उड़द की जैविक खेती

जैविक उड़द उत्पादन की तकनीकें

उड़द उदयपुर, भीलवाड़ा, बाँसवाडा, राजसमन्द, चित्तौडगढ़, कोटा एवं डूँगरपुर जिले में बोई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है इसकी बुवाई के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें जिसमें जल निकासी की पूरी व्यवस्था हो। रेतीली दोमट मिट्टी में उड़द बोई जा सकती है। उड़द की जैविक खेती की कृषि विधियाँ इस प्रकार हैंः-

उन्नत किस्में
पीयू-31,प्रताप उडद-1, टी-9, आर बी यू-38 एवं के यू- 96-3 काम में लेवें। विभिन्न संभागों की सिफारिशों के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन करें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
फसल की अच्छी वृद्धि के लिए खेत को भली-भाँति तैयार करना चाहिये। गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिये। जिससे भूमि में उपस्थित कीड़ों के अण्ड़ों, रोगाणुओं एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। अंतिम जुताई के समय नीम की खली 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि उपचार करें।

बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवष्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के पष्चात् 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 600 ग्रामपीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये फिर छाया मंे सूखाकर तत्काल बो देना चाहिए।

बीज दर एवं बुवाई
15-20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से काम में लेवें। बुवाई मानसून की वर्षा होने के साथ-साथ करें। वर्षा देरी से हो तो 30 जुलाई तक बुवाई की जा सकती है। कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रखी जाये। बारानी परिस्थितियों में मक्का ़ उड़द की अन्र्तषस्य 2ः2 के अनुपात में करें। बीज की गहराई 5 सेन्टीमीटर से ज्यादा न रखें, इससे अंकुरण में सरलता रहती है।

पोषकतत्व प्रबन्धन
उडद को 20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की आवष्यकता होती हैं। उडद में पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए 4 टन गोबर की खाद बुवाई के 21 दिन पूर्व खेत में डालकर इसे भूमि में भली-भाँति मिला दें। बीजों को राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित कर बुवाई करें। पौधों की सजीवता बढ़ाने के लिए बीडी-500 (75 ग्राम प्रति 40 लीटर) का बुवाई से पहले षााम को एवं बीडी-501 (2.5 ग्राम प्रति 40 लीटर) का छिड़काव प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से 20 दिन बाद सुबह के समय करें। एक महिने बाद पुनः दोहरायें।

सिंचाई
पौधों की बढवार के समय और फूल आते समय पानी की अधिक आवश्यकता होती है। अतः इन अवस्थाओं पर वर्षा नहीं होने पर सिंचाई अवश्य करें।

निराई-गुडाई
आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहें। 30 दिन की फसल होने तक निराई-गुडाई कर देनी चाहिये। फसल में पहली गुडाई बुवाई के 15 दिन बाद तथा दूसरी गुडाई 30 दिन पर कर खरपतवार अवश्य निकाल देवें।

फसल संरक्षण
मोयला, हरा तेला व सफेद मक्खी: 25 दिन की पौध पर 2 प्रतिशत नीम के तेल के घोल का छिड़काव करें।
फली छेदक: नीम का तेल 10 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी के घोल से छिड़काव (प्रथम कीट प्रकोप दिखने पर एवं द्वितीय 10 दिन अंतराल पर) करें।
पीतशिरा मोजेक (विषाणु) रोग: यह रोग चूसक कीडों द्वारा फैलता है। अतः इन चूसक कीडों की रोकथाम हेतु 25 दिन की पौध पर एक प्रतिशत नीम के तेल के घोल का छिड़काव करें।
पत्ती धब्बा रोग:
बीडी-5012.5 ग्राम प्रति 40 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर के घोल का छिड़काव (प्रथम रोग दिखने पर एवं द्वितीय 10 दिन अंतराल पर) करें।

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