सोयाबीन की जैविक खेती

जैविक सोयाबीन उत्पादन की तकनीकें

उन्नत किस्में
जे.एस. 335, एन.आर.सी.-7, प्रताप सोया-1,प्रताप सोया-2,जे.एस.93-05,एनआरसी-37, प्रताप राज सोया-24, जेएस-95-60, जेएस-97-52, जेएस-71-05, आरकेएस-45 इत्यादि संभागीय सिफारिश अनुसार बोयें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
फसल की अच्छी वृद्धि के लिएखेत को भली-भांति तैयार करना चाहिये। गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिये जिससे भूमि में उपस्थित कीड़े, रोग एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। अंतिम जुताई के समय नीम की खली से 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि उपचार करें।

बीज दर एवं बुवाई
एक हैक्टेयरक्षैत्र को बुवाई के लिए 80 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। सोयाबीन की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर तथा पौधे की दूरी 5-7 सेन्टीमीटर रखें। सोयाबीन की बुवाई सीडड्रिल से करने के लिए सीडड्रिल के टायनों को 30 सेन्टीमीटर पर स्थिर कर बुवाई करें अन्यथा पौधों की संख्या आवश्यकतानुसार नहीं रहेगी।
सोयाबीन की बुवाई मानसून आने के साथ ही करना चाहिये। बुवाई के समय भूमि में कम से कम 10 सेन्टीमीटर की गहराई तक पर्याप्त नमी होनी चाहिये। सोयाबीन की बुवाई के लिएजून के तीसरे सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह उपयुक्त समय है। देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी होती है। जहाँ सिंचाई का साधन उपलब्ध हो वहां वर्षा का इंतजार न करते हुए पलेवा देकर बुवाई करें।

बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। ट्राइकोडर्मा जैविक फंफूदीनाशक से 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सूखाकर तत्काल बो देना चाहिये।

पोषकतत्व प्रबन्धन
सोयाबीन में 20-30 किलोग्राम/हैक्टेयर नत्रजन की आवश्यकता होती है। बुवाई के 21 दिन पूर्व 6 टन गोबर की खाद या अंतिम जुताई के समय 2 टन वर्मीकम्पोस्ट भूमि में मिलायें। इसके साथ-साथ उपरोक्त बताए गये तरीके से जीवाणु कल्चर से बीजोपचार अवश्य करें।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
सोयाबीन की फसल में खरपतवारों को 30-45 दिन की अवस्था तक अवश्य नियंत्रित रखें। यदि परिस्थितियाँ सामान्य हों तो पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन तथा दूसरी 40-45 दिन की फसल अवस्था पर करें। गुड़ाई उपरांत निकाले गये खरपतवारों को तीस दिन की अवस्था पर सोयाबीन की कतारों के मध्य पलवार के रूप में बिछा देने से खरपतवारों का नियंत्रण होता है।

सिंचाई
सोयाबीन की फसल को वैसे तो सामान्य वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु फूल आने एवं फलियों में दाना बनते समय पानी की कमी नहीं होने देना चाहिये। अतः उस समय वर्षा नहीं हो तो आवश्यकतानुसार 1-2 सिंचाईयाँ करें।

पौध संरक्षण
सोयाबीन की फसल में मुख्य रूप से फड़का, तना व पŸाी छेदक, गर्डल बीटल, हरी अर्ध कुण्डक (सेमी लूपर), तम्बाकू इल्ली आदि प्रमुख हैं। इसी प्रकार सोयाबीन में मुख्यतया विषाणु रोग (हरा व पीला मौजेक), जीवाणु रोग, तना सड़न रोग, पŸाी धब्बा रोग, माइको प्लाज़मा जनित रोग मुख्य हैं। इनसे बचने के लिएनिम्न उपाय करें।

  • पक्षी आश्रय के लिए ‘T’ आकार की 40 से 50 खपच्चियां प्रति हैक्टेयर की दर से लगाना चाहिए।
  •  15 दिन की फसल अवस्था पर नीम आधारित एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. का 5.0 मिलिलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
  •  30 दिन की फसल अवस्था पर अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा के अण्डों को 1.0 लाख/हैक्टेयर की दर से फसल पर छोड़ना चाहिए।
  • 30 से 45 दिन की फसल अवस्था तक गर्डलबीटल से ग्रसित पौधे के भागों (डण्ठलों) को सप्ताह में दो बार के हिसाब से तोडकर नष्ट करना चाहिए।
  • 50 दिन की फसल अवस्था पर सुक्ष्मजीवी कीटनाशक बेसीलस थूरिन्जेन्सिस (बी.टी.) का 1.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • काॅलर गलन रोग हेतु बीजों को एक मिनिट गोमूत्र (1ः10)+हींग (0.1 प्रतिशत) के घोल से उपचारित करें।
  • पत्तीझुलसा रोग हेतु किण्वित छाछः( 20-30 दिन पुरानी) का बुवाई के 30 एवं 45 दिन बाद छिड़काव करें।
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