तिल की जैविक खेती

जैविक तिल उत्पादन की तकनीकें
उन्नत किस्में
आरटी-125, आरटी-127, आरटी-346,आर.टी-351, इत्यादि संभागीय सिफारिश अनुसार बोयें।
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
मानसून की पहली वर्षा आते ही एक या दो बार खेत की अच्छी तरह जुताई करके भूमि तैयार कर लें। यह ध्यान रखें कि जैविक तिल की खेती में किसी प्रकार का रसायन या इससे बना उत्पाद काम में नहीं लेना है। दीमक एवं भूमिगत कीटों की रोकथाम के लिए बुवाई के समय 2 क्विटंल प्रति हैक्टेयर नीम की खली अंतिम जुताई के समय खेत में मिलायें।
बीज दर एवं बुवाई
शाखा वाली किस्मों के लिए 2-2.5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर क्षैत्र के लिए पर्याप्त है। शाखा वाली किस्मों में कतारों के बीच 35 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेन्टीमीटर रखते हुए बुवाई करें। शाखा रहित किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रखें। इन किस्मों के लिए 4-5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर काफी रहता है। समय पर बुवाई की जानी आवश्यक है। सिंचाई की व्यवस्था होने पर बुवाई जून के अंतिम सप्ताह अथवा प्रथम बारिश होते ही कर देनी चाहिए।
बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशक से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के पश्चात् 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सभी बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये, फिर छाया मंे सुखाकर तत्काल बो देना चाहिए।
पोषक तत्व प्रबन्धन
तिल को 20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। तिल में पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए 4 टन गोबर की खाद बुवाई के 21 दिन पूर्व भूमि में भली-भाँति मिला दें। बीजों को एजोटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित कर बुवाई करें। पौधों की सजीवता बढ़ाने के लिए बीडी-500 (75 ग्राम प्रति 40 लीटर) का बुवाई से पहले शाम को एवं बीडी-501 (2.5 ग्राम प्रति 40 लीटर) का छिड़काव प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से 20 दिन बाद सुबह के समय करें। एक महिने बाद पुनः दोहरायें।
सिंचाई
पौधों की शाखाएं आने के समय एवं फूल आते समय पानी की अधिक आवश्यकता होती है। वर्षा न होने की ंिस्थति में इन अवस्थाओं में सिंचाई अवश्य करें।
निराई गुडाई
तिल की फसल को शुरू के 30-35 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। अतः खेत से खरपतवार निकालते रहें। तिल की फसल में पहली गुडाई बुवाई के 15 दिन बाद तथा दूसरी गुड़ाई 30 दिन पर कर खरपतवार अवश्य निकाल देवें।
फसल संरक्षण
जैविक तिल में फाइटोफथोरा झुलसा रोग,फाइलोडी रोग, पत्ती लपेटक एवं फलीछेदक कीट के नियंत्रण हेतु जैविक नियंत्रण मोड्यूल (ट्राइकोडर्मा हरजियेनम 8 ग्राम/किलोग्राम बीजोपचार + अजाडीरेक्टिन 2 मिलिलीटर/लीटर पानी की दर से तीन छिड़काव, प्रथम बुवाई के 20-30 दिन बाद, द्वितीय 40 दिन बाद एवं तृतीय 50 दिन प्रभावी पाया गया है।