राजस्थान में जैविक खेती की संभावनाएँ

सिंचित क्षेत्रों में तो कहीं भी जैविक खेती की जा सकती है लेकिन बारानी दशा में जैविक खेती उन्हीं किसानों को करनी चाहिए जिनकी मृदा में जैविक कार्बन का स्तर अच्छा हो तथा खेती के साथ पशुपालन एक मुख्य धन्धा हो, जिनके पास जमीन 20 बीघा से ज्यादा हो वहाँ जल संरक्षण एवं इसके पुनः उपयोग की क्षमता के आधार पर जैविक खेती के अन्तर्गत क्षेत्रफल निर्धारित करना चाहिए। इनकी जैविक खेती के लिए अच्छी संभावनाएँ हैं। उर्वरकों एवं दवाईयों का जंहा प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में करते हैं और कई गांवों एवं ढाणियों में इनका इस्तेमाल न के बराबर है। लेकिन इनका कृषि उत्पाद जैविक नाम से नहीं बेचा जा सकता है। समुह में जैविक खेती की अधिक सम्भावनाये हैंै।
अतः ऐसे क्षेत्रों में परम्परागत से जैविक रूपान्तरण की अवघि कम होती है तथा जैविक कृषि के अपनाने के रूपान्तरण समय में उत्पादकता कम होने की सम्भावना बहुत कम होती है तथा उचित प्रबन्धन के माध्यम से इसे टिकाऊ बनाया जा सकता है। जैविक खेती पर राष्ट्रीय टाॅक्स फोर्स समिति ने भी कम उर्वरकों की खपत की दृष्टि से बारानी क्षेत्रों को जैविक खेती के लिए उपयुक्त माना है।
राज्य में जैविक खेती की सम्भावनाएँ तो हैं परन्तु किसान के फसल होने के रास्ते में बाधाएँ भी बहुत हैं। ये बाधाएँ केवल उत्पादन तक ही सीमित नहीं हैं।
वर्तमान परिपेक्ष्य में जैविक खेती के लिए निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना आवश्यक है-
- जैविक प्रमाणीकरणः जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया की जानकारी का अभाव, इसकी जटिल प्रक्रिय एवं कृषि उद्यमियों के लिए एक चुनौती है। इस प्रक्रिया का सरलीकरण तथा सरकारी सहायता के प्रावधान आवश्यक है।
- उचित कृषि तकनीकों के लिए अनुसंधानः विभिन्न कृषि खाद्य पदार्थों तथा कृषि आदानों के जैविक तरीके से उत्पादन के लिए व्यापारिक स्तर पर उचित व सम्पूर्ण तकनीकों का प्रायः अभाव है। इसके साथ ही उपलब्ध तकनीक महंगी होने के कारण किसानों को ज्यादा समय तथा पैसा खर्च करना पड़ता है।
- रूपान्तरण समयावधिः पराम्परागत कृषि से प्रथम जैविक उत्पाद पैदा करने में 2 से 3 वर्ष का समय लगता है। इस अवधि के दौरान कृषि उत्पाद का सही मूल्य तथा जैविक उत्पादन प्रक्रियाएँ अपनाना एक धैर्य का काम है।
- बाजार की अनिश्चिताः किसान व कृषि उद्यमियों के लिए जैव उत्पाद को बेचने के लिए बाजार मांग की अनिश्चिता रहती है। संविदा खेती के तहत तो किसानों को आसानी से बाजार मिल सकता है लेकिन आम किसान के लिए जैव उत्पाद का अधिक मूल्य हासिल करना एक जटिल कार्य है। बाजार मांग एवं क्षमता का सही मूल्यांकन करना कठिन है।
- अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाः अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग देशों के अलग-अलग प्रमाणीकरण मानक हैं जिनके तहत स्वच्छता एवं गुणवत्ता के मानक काफी जटिल हैं। इन मानकों को पूरा करने के लिए उच्चतम तकनीकी एवं अन्य संसाधनों का उपलब्ध होना आवश्यक है। इसके लिए सामूहिक प्रयास करने के साथ-साथ सरकारी सहायता की भी जरूरत पड़ती है।