सरसों की जैविक खेती

जैविक सरसों उत्पादन की तकनीकें
उन्नत किस्में
लक्ष्मी, वसुन्धरा, अरावली, जगन्नाथ, स्वर्णज्योति, आर.जी.एन.-73, गिरिराज, आर.बी.-50 इत्यादि
खेत की तैयारी
सरसों हेतु दोमट व हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। अच्छे जल निकास वाली मिट्टी, जो लवणीय एवं क्षारिय न हो ठीक रहती है। इसको हल्की ऊसर भूमि में भी बोया जा सकता है।
सरसों की खेती बारानी एवं सिंचित दोनों प्रकार से की जाती है। बारानी खेती के लिएखेत को खरीफ में खाली छोड़ना चाहिये। पहली जुताई वर्षा ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से करंे। समय समय पर खेत की स्थिति के अनुसार 4-6 जुताईयां करें। सिंचित खेती के लिएभूमि की तैयारी बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व प्रारम्भ करें। जहां सम्भव हो बारानी खेतों में बरसात होते ही ज्वार व चंवला मिलाकर चारे के लिएबोयें। 60 दिन की फसल लेकर रबी हेतु खेत तैयार करें एवं समय पर सरसों बोयें।
बीजदर एवं बुवाई
बुवाई के लिएशुष्क क्षेत्र में 4-5 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्र में 2.5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर प्रर्याप्त रहता है। बीज 30 से 45 सेन्टीमीटर अन्तर पर कतारो में 5 सेन्टीमीटर गहरा बोये। असिंचित क्षेत्रो में बीज की गहराई नमी के अनुसार रखें।
बारानी क्षेत्रो में सरसों की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टुबर तक एवं सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई अधिक से अधिक अक्टुबर के अन्त तक कर देनी चाहिये। सिंचित क्षेत्र में बुवाई पलेवा देकर ही करे। देर से बुवाई करने पर उपज में भारी कमी हो जाती है।
बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी से 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करें। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सूखाकर तत्काल बो देवें।
पोषक तत्व प्रबन्धन
जैविक पोषकप्रबंधन के लिए सरसो में मुर्गी का खाद 1.7 टन प्रति हैक्टेयर ़बीडी 500 (75 ग्राम प्रति 40 लीटर)़़ बीडी 501 (2.5 ग्राम प्रति 40 लीटर) या केचुआ खाद 4 टन प्रति हैक्टेयर ़ बीडी 500 (75 ग्राम प्रति 40 लीटर)़़़ बीडी 501 (2.5 ग्राम प्रति 40 लीटर) प्रति हैक्टयर प्रयोग करे।
बायोडायनेमिक खाद 500 का प्रयोगः 75 ग्राम बी.डी. 500 खाद को 40 लीटर प्रति हैक्टेयर स्वच्छ पानी को प्लास्टिक की बाल्टी में एक घंटे तक घडी की दिशा एवं विपरित दिषा में लकडी से घूमाते हुए भंवर अच्छी प्रकार बना लेनी चाहिए। बुवाई से पहले इस घोल को सायंकाल चन्द्र की दक्षिणायन अवस्था मे झाडू या पत्ती युक्त शााखा से खेत मे बडे-बडे बँूद के रूप मे छिडकाव करना चाहिए। इसका दूसरा छिड़काव बुवाई के एक महीने के बाद करे।
बायोडायनेमिक खाद 501 का प्रयोगः 2.5 ग्राम बी.डी.501 को 40 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर में एक घंटे तक घडी की दिशा एवं विपरित दिशा में लकडी से घूमाते हुए भंवर अच्छी प्रकार बनाते हुए प्रातःकाल अच्छी प्रकार छिड़काव किया जाता है। प्रथम छिडकाव पौधो पर 2-4 पत्ती अवस्था आने के बाद तथा द्वितीय छिडकाव फूल खिलते समय तथा तृतीय छिडकाव दाना बनने की शुरूआत की अवस्था के समय में प्रातःकाल के समय चन्द्र उत्तरायण की स्थिति मे छिडकाव किया जाना चाहिए।
निराई गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण
पौधो की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई कर खरपतवार निकाले एवं निराई के साथ छंटाई कर घने पौधो को निकालकर पौधो के बीच की दूरी 10 सेन्टीमीटर कर देवें। सिंचाई के बाद गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ ही फसल की बढ़वार भी अच्छी होगी।
सिंचाई
सरसो की फसल के लिएएक सिंचाई पलेवा के रूप में करे। इसके बाद बुवाई के 30-35 दिन के बाद दूसरी सिंचाई एवं तीसरी सिंचाई 70-75 दिन के बाद करनी चाहिऐ ।
पौध संरक्षण
सरसो में मोयला कीट तथा रोगो का प्रकोप कम करने हेतु अजेडीरेक्टीन 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 45-60 दिन पर प्रथम छिडकाव एवं दूसरा व तीसरा छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर करे। नीम की निम्बोली का 5 प्रतिशत घोल बनाकर प्रथम छिडकाव बुवाई के 45 दिन बाद एवं दूसरा तथा तीसरा छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर करे। इसके अलावा लहसुन (0.2 प्रतिशत) के घोल के प्र्रयोग से कीट नियन्त्रित होते है एवं दाने की गुणवत्ता उत्तम होती है ।