ग्वार की जैविक खेती

जैविक ग्वार उत्पादन की तकनीकें

उन्नत किस्में 
आर.जी.सी.-936,आर.जी.सी.-986, आर.जी.सी.-1038, आर.जी.सी.-1055, आर.जी.सी.-1017, आर.जी.सी.-1031 इत्यादि संभागीय सिफारिश अनुसार बोयें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार  
फसल की अच्छी वृद्धि के लिएखेत को भली-भांति तैयार करना चाहिये। साधारणतया ग्वार की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। ग्वार की खेती सिंचित व असिंचित दोनो रूपों में की जाती है। गर्मी के दिनों में एक या दो जुताई और वर्षा के बाद एक या दो जुताई कर, पाटा लगाकर खेत तैयार कर लीजिए। ताकि खरपतवार व कचरा नष्ट हो जायें। अंतिम जुताई के समय नीम की खली से 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से व ट्राइकोडर्मा मित्र फफूँद 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर 100 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद पर सवंर्धितकर भूमि उपचार करें।

बीज दर एवं बुवाई 
उन्नत किस्म का निरोग बीज काम में लेवें। बुवाई वर्षा होने के साथ-साथ या वर्षा देर से हो तो 30 जुलाई तक कर देना अच्छा रहता है। ग्वार की अकेली फसल हेतु 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर से बुवाई करें, किन्तु इसका मिश्रित फसल के लियें 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर काफी होता है। कतारो की दूरी 30-30 सेन्टीमीटर पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रखिए। 

बीजोपचार 
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें।् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर  गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सूखाकर तत्काल बो देना चाहिये। 

पोषकतत्व प्रबन्धन 
ग्वार में 20 किलोग्राम/हैक्टेयर नत्रजन की आवश्यकता होती है। बुवाई के पूर्व 1.2 टन वर्मीकम्पोस्ट भूमि में मिलायें। बुवाई के 30 दिन पश्चात् मटका खाद का छिड़काव करें। साथ ही बीडी-500 (75 ग्राम प्रति 40 लीटर) का बुवाई से पहले शाम को एवं बीडी-501 (2.5 ग्राम प्रति 40 लीटर) का छिड़काव प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से 15 दिन बाद सुबह के समय करें।उपरोक्त बताए गये तरीके से जीवाणु कल्चर से बीजोपचार अवश्य करें।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण 
पहली निराई-गुड़ाई पौधो के अच्छी तरह जम जाने के बाद किन्तु एक माह में ही कर दिजिए। गुड़ाई करते समय ध्यान रहे कि पौधो की जड़ें नष्ट न होने पायें।

सिंचाई 
ग्वार की फसल को वैसे तो सामान्य वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु फूल आने एवं फलियों में दाना बनते समय पानी की कमी नहीं होने देना चाहिये। बुवाई के  तीन सप्ताह बाद यदि वर्षा न हों और सम्भव हो तो सिंचाई किजिए। इसके बाद यदि वर्षा न हो तो 20 दिन बाद फिर सिंचाई करें।

पौध संरक्षण
ग्वार की फसल में मुख्य रूप से जैसिड कीट, सुखा जड़गलन व झुलसा रोग प्रमुख हैं। इनसे बचने के लिएनिम्न उपाय करें।

  • जेसिड नियन्त्रण हेतु नीम की पत्तियों के अर्क का 5 प्रतिशत घोल बनाकर तीन छिड़काव प्रथम फसल की वानस्पतिक अवस्था पर एवं दुसरा 50 प्रतिशत पुष्पन एवं फली लगने की अवस्था पर करें। 
  •  सूखा जड़गलन रोग नियन्त्रण हेतु अंतिम जुताई के समय ट्राइकोडर्मा मित्र फफूँद 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर 100 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद पर सवंर्धितकर भूमि उपचार करें।
  •  पत्ती झुलसा रोग हेतु 2 प्रतिशत नीम के तेल काछिड़काव  बुवाई के 35, 50 एवं 65 दिन बाद करें।
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