चना की जैविक खेती

जैविक चना उत्पादन की तकनीकें
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
मध्यम व भारी मिट्टी के खेतों में गर्मी में एक दो जुताई करें। जहाँ सिंचाई की व्यवस्था है और खरीफ की फसल के बाद चने की फसल ली जाती है वहाँ आवश्यकतानुसार हल्का पलेवा देकर खेत की तैयारी करें। दीमक एवं कटवर्म के प्रकोप से बचाव हेतु नीम की खली 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायंे। सूखा जड़गलन निवारण हेतुअंतिम जुताई के समय ट्राइकोडर्मा मित्र फफूँद 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर 100 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद पर सवंर्धित कर भूमि उपचार करें।
उन्नत किस्में
प्रताप चना-1, आर.एस.जी.-895, आर.एस.जी.-973, आर.एस.जी.-807, आर.एस.जी.-963, आर.एस.जी.-945, आर.एस.जी.-902, आर.एस.जी.-991, प्रताप राज चना, जी.एन.जी.-469, जी.एन.जी.-1581 इत्यादि है।
बीजदर एवं बुवाई
प्रति हैक्टेयर 70-80 किलोग्राम बीज बोयें। कतार से कतार की दूरी 30 संेंटीमीटर रखें। सिंचित क्षैत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी व बारानी क्षैत्र में नमी को देखते हुए 7-10 सेंटीमीटर गहरी बुवाई कर सकते है। असिंचित क्षैत्रों में चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कर देवें तथा सिंचित क्षैत्रों में बुवाई 20 अक्टूबर तक करें।
बीजोपचार
चने में जड़ गलन रोग के नियंत्रण हेतु प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर बुवाई करें।
पोषक तत्व प्रबन्धन
जैविक चने में पोषक प्रबन्धन हेतु केंचुआ खाद 2 टन तथा सरसों की खली 2 टन/हैक्टेयर बुवाई से पहले $ केंचुआ खाद 2 टन/ हैक्टेयर बुवाई के 40 दिन बाद तथा राइजोबियम 600 ग्राम/हैक्टेयर की दर से $ फोस्फेट घोलक जीवाणु 600 ग्राम/हैक्टेयर की दर से बीजोपचार। बायोडायनेमिक खाद 500 को 75 ग्राम/हैक्टेयर की दर से 40 लीटर पानी में बुवाई के एक दिन पहले शाम को मिट्टी पर छिड़काव करें। बायोडायनेमिक खाद 501 (सिलिका खाद) का 2.5 ग्राम/हैक्टेयर की दर से 40 लीटर पानी में मिलाकर अंकुरण के पश्चात् 2-3 पत्ती अवस्था पर छिड़काव करें।
सिंचाई
चने की खेती अधिकतर बारानी क्षेत्रों में की जाती है परन्तु जहाँ पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहाँ मिट्टी व वर्षा को ध्यान में रखते हुए पहली सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद फूल आने पर एवं दूसरी फली आने पर करें। यदि एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो 60 दिन बाद देवें।
ध्यान रखें, खेत में कहीं भी पानी नहीं भरना चाहिये वरना फसल पीली पड़ जायेगी और मर जायेगी। यदि खेत में जल्दी उखटा रोग लग जाये तो क्यारी बनाकर बुवाई के 20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये।
निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण
प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-35 दिन पर तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरी निराई-गुड़ाई इसके बीस दिन बाद करें।
पौध संरक्षण
शुष्क जड़गलनः जैविक चने में शुष्क जड़ गलन बीमारी से बचाव हेतु ट्राइकोडर्मा (8 ग्राम प्रति किलोग्रामग्राम बीज) के साथ उपचार + ट्राइकोडर्मा (2 किलोग्रामग्राम प्रति हैक्टेयर) को 100 किलोग्राम देशी खाद पर सम्वर्धित कर बुवाई से पहले मिट्टी में मिलाये।
फली छेदक कीट: जैविक चने में फली छेदक कीट के प्रबन्धन हेतु अन्र्तशस्य(एक पंक्ति सरसों व छः पंक्ति चना ) और भ्ंछच्ट 250 स्म् का छिड़काव फूल आने की अवस्था पर अवश्य करें।