जैविक मुर्गी पालन

परिचय
आधुनिक भारत का पोल्ट्री क्षेत्र पिछले चार दशक में पहले से वाणिज्यिक क्षेत्र में संगठित, वैज्ञानिक और जीवांत उद्योग बन गया है। कुक्कट पालन ग्रामीण क्षेत्र में विशेष रूप से भूमिहीन मजदूरों, छोटे और सीमान्त किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है, एवं पारिवारिक आय बढ़ाता है। वर्तमान समय में उपभोक्ता अपने द्वारा उपभोग की जाने वाली खाद्य उत्पादों की सुरक्षा और गुणवŸाा को लेकर अधिक जागरूक हो गये है। उपभोक्ता कम भुगतान पर सुरक्षित उत्पाद का उपभेग करना चाहते है। इसलिए किसी भी रासायनिक व माइक्रोबियल अवशेषों के बिना पोल्ट्री उत्पादों का उत्पादन करना आज की जरूरत है। हमारा देश कई प्रकार के कुक्कट उत्पाद दूसरे देशों को निर्यात कर रहा है। हम संसार में अंड़ा उत्पादन में 3वें और मांस उत्पादन में 4वें स्थान पर है। किंतु जहाँ तक प्रति व्यक्ति अंडे़ व सालाना चिकन की खपत का सवाल है, यह बहुत ही कम है। अंड़े की प्रति व्यक्ति सालाना खपत 180 अंड़े व मुर्गी मांस की खपत 10 किलो प्रति व्यक्ति होनी चाहिए। इसके मुकाबले हमारे देश में केवल 30 अंड़े तथा 1/2 किलो मुर्गी मांस प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष है।
मुर्गीपालन केवल अवने लिए ही नहीं कमाता, बल्कि अंड़े व चिकन मांस के रूप में संतुलित आहार पैदा करके देश की सेवा करता है, साथ ही यह एक मेहनत व ईमानदारी का व्यवसाय है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है, मुर्गी पालन का व्यवसाय कृषि के लिए उŸाम प्रकार की खाद भी सुलभ करता है। मुर्गी की खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश काफी मात्रा में होता है। यह खाद खेती के लिए बहुत ही उपजाऊ और लाभकारी है।

जैविक मुर्गी पालन की अवधारणा
FAO/WHO कोडेक्स एलेमेट्रिक्स कमीशन ने जैविक खेती को एक अद्वितीय उत्पादन प्रबंधन प्रणाली के रूप में परिभाषित किया है जो जैवि-विविधिता, जैविक चक्र और मिट्टी की जैविक गतिविधियों सहित पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ाता है और यह सभी कृषि में सस्य, जैविक और यांत्रिक क्रियाओं कर उपयोग करके तथा कृत्रिम उत्पादक सामग्री का उपयोग बंद करके किया जा सकता है। जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य मिट्टी-पौधे, पौधे-पशु और पशु-मिट्टी की परस्पर निर्भरता को स्थापित करना और बनाये रखना है और स्थानीय संसाधनों पर आधारित एक स्थायी कृषि-पारिस्थितिकी प्रणाली का उत्पादन करता है। जैविक खेती के लिए बाहरी उत्पादक सामग्री (जैसे-उर्वरक, एंटीबायोटिक) की आवश्यकता नहीं होती है।

मुर्गी की नस्लंेः
मुर्गी पालन में चूजों का वही स्थान है जो खेत में बीज का होता है। मुर्गी पालन में उस नस्ल को चुना जाना चाहिए, जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल है। स्वदेशी नस्ले कड़कनाभ, अशील, निकोबारीफाॅल्स आदि है। प्रजनन लक्ष्य पशु के प्राकृतिक व्यवहार के अनुरूप तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्देशित होना चाहिए। जैविक मुर्गी पालन में आंनुवाशिक रूप से संशोधित नस्लों का उपयोग नहीं करते है। प्रजनन तकनीक प्राकृतिक होनी चाहिए। कृत्रिम गर्भाधान की अनुमति भारत में केवल पशु चिकित्सालयों पर दी जाती है। अधिक अंडा उत्पादन के लिये हार्मोनल उपचार निषिद्ध होना चाहिए। भारत में छोटे पैमाने उपलब्धता न होना, परिवहन लागत और घुटन के नुकसान और आवश्यक संख्या में चुजों की आपुर्ति करने वाले हैचुरी की गैर उपलब्धता है।

Housing and Management (आवास और प्रबंधन):  अच्छा और अधिक उत्पादन के लिए फार्म पर अच्छे रख-रखाव की जरूरत होती है। जैविक आवास में प्रबंधन मानकों का पालन करने का मुख्य उद्देश्य पोल्ट्री पक्षी को अपने सभी सामान्य व्यवहार स्वरूप को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है। तनाव युक्त पक्षियों के झुंड में स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता दोनों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
युरोपीय और अमेरिकी देशों में जैविक मुर्गीपालन के लिए चलित आवास अचलित आवास की तुलना में अधिक लोकप्रिय है। चलित आवास का मुख्य लाभ यह कि पक्षी घास के क्षेत्रों में पलायन करते है जिससे मृदा में परजीवियों से होने वाले नुकसान कम हो जाते है।
चलित आवास का मुख्य नुकसान यह कि अन्य सभी उत्पाद सामग्री (जैसे- खाना, भुसा, कुड़ा करकट और पानी) आदि को फार्म से दूर लेकर जाना पड़ता है, जिससे मजदूरों की आवश्यकता बढ़ जाती है। भारत में चलित आवास विŸाीय और क्षेत्रीय बाधाओं के कारण सीमित है।
आवास का निर्माण पक्षियों को शिकारियों से बचाने के लिए किया जाना चाहिए। मुर्गी शेड़ की नियमित सफाई महत्वपूर्ण है। जैविक मुर्गी उत्पादन के लिए पक्षियों को गहरी कुड़े प्रणाली के तहत पाला नहीं जाना चाहिए। प्रमाणित एजेंसियों द्वारा निर्धारित समय के अनुसार कृत्रिम प्रकाश का उपयोग करना चाहिए। जैविक क्षेत्र मे मांस उत्पादन करने वाले पक्षियों को आमतौर पर 81 दिनांे की आयु के लिए विकसित किया जाता है। मुर्गी को चराई क्षेत्र, ताजी हवा, स्वच्छ पानी, संतुलित राशन, धूल स्नान की सुविधा और खरोंच के लिए ट्रिमिंग आमतौर पर निषिद्ध प्रथाएं है लेकिन कुछ प्रमाणित एजेंसिया अभी भी ट्रिमिंग और डी-बैकिंग की अनुमति देती हैं। डी-बींकिग ऊपरी चैंच के ड से अधिम को हटा कर की जानी चाहिए।

Outside Access, Welfare and Behaviour (कल्याण, बाह्य पंहुच और व्यवहार): UKROFS (UK Register of Organic Food Standards)  के मानकों में निर्देशित है कि मुर्गी पालन के लिए ऐसा स्थान होना चाहिए जो वनस्पतियों से युक्त है जैविक मुर्गीपालन में उस खलियान प्रणाली को शामिल नहीं किया जाता है जिसके बाहर छोटा कूडेदान होता है। हांलाकि कुछ देशों में यह प्रणाली जैविक मानकों के तहत अनुमत है जैसे-जर्मनी। मुदा संघ मानक के द्वारा मुक्त रेंज अण्ड़ा उत्पादन के लिए सेट स्टाॅकिग दर (618 पक्षी/हैक्टेयर) तय की गई है जो कि युरोपीय संघ के द्वारा तय की गई स्टाॅकिग दर (1000 पक्षी/हैक्टेयर) से कम है, लेकिन स्टाॅकिग के लिए स्थिति स्पष्ट नहीं है।
आवास के संबंध में कल्याणकारी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए UKROFS ने चांेच ट्रिमिग और विंग क्लिपिंग के लिए MAFF कल्याण कोड़ का उल्लेख किया है। ै।मानक केवल व्यक्तिगत पक्षियों के लिए पंख कतरन की अनुमति देते है, और चांेच क्लिपिंग को प्रतिबंधित करते है। यूरोपीय संघ (EU) ने भी इस मामले में समान राय व्यक्त की है, हांलाकि इसके अनुसार कुछ सेक्टर निकायों में योग्य कर्मियों द्वारा बहुसंकेतन किया जाना चाहिए।
हाॅलेण्ड में जैविक अंड़े देने वाली मुर्गीयों पर किये गये शोध बताते है कि इनके व्यवहार को नियंत्रित करने में किसान देखभाल और पर्यावरण प्रबंधन महत्वपूर्ण कारक है। जैविक मुर्गी पालन/चलित आवास में मुर्गीयों का व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण है क्यांेकि इसमें मुर्गीयों को झुंड मे घूमने के लिए छोड़ा जाता है। पक्षियों के द्वारा अपने सामान्य व्यवहार को अभिव्यक्त करने के लिए जैसे- पंखों के फडफड़ाने, रेत-धूल स्नान के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। इसमें मुख्य रूप से रेत और धूल स्नान के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। इसमें मुख्य रूप से रेत और घूल स्नान स्वच्छता और स्वास्थ्य के रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण है और यह बाहरी परजीवी की संख्या को कम करने में मदद करती है। अन्य फार्म पर जानवरों की तरफ मुर्गी (चिकन) में भी एक मजबूत पेकिंग क्रय होता है जिसमें पक्षी सिर के रूप के आधार पर 50-60 अन्य पक्षियों के झुंड में भी एक-दूसरे को पहचान सकते है। बड़े समूह उन्हें सामाजिक रूप से अस्थिर बनाते है एवं चोंच की समस्या पैदा करते है। इसलिए इस तरह के झुंड में उपसमुहों का गठन करना चाहिए। पक्षियों के झुंड में लगभग 4-6 मुर्गीयों के लिए एक मुर्गा होना चाहिए। पोल्ट्री में पंख पैकिंग और नरभक्षण प्रमुख समस्याएं है। भोजन पाना भी पक्षियों का एक प्रमुख सामाजिक व्यवहार है व आमतौर पर खुंटी के ध्वनिक संकेतों और अन्य मुर्गीयों के उŸोजित स्वर के साथ खाते है। इसी तरह से जंजीरों की आवाज और खिलाने को शोर उनकी भूख का उŸोजित करता है।
पेकिंग और स्क्रेचिंग सामान्य खिलाने के व्यवहार का हिस्सा है, और उनकी आवस प्रणाली को इन गतिविधियों के लिए उपयुक्त स्थान प्राप्त करवाना चाहिए।

Feeding and Watering (खिलाना और पानी पिलाना): पक्षियों को अच्छी गुणवक्ता वाला 100 प्रतिशत जैविक रूप से उगाया गया चारा खिलाना चाहिए। आहार के 5 प्रतिशत तक विटामिन और खनिज की खुराक को छोड़कर सभी अवयवों को जैविक रूप से प्रमाणित किया जाना चाहिए। मुर्गी का आहार पक्षियों के प्राकृतिक भोजन व्यवहार व पाचन संबंधी जरूरतों को पूरा करता हो। इसलिये जैविक रूप से मुर्गी पालन के लिए केन्द्रित संतुलित राशन की आवश्यकता होती है। जैविक मु र्गी पालन में आहार का महत्वपूर्ण घटक अनाज (मक्का) है। अनाज मुख्य रूप से ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करते है। मक्का सबसे महत्वपूर्ण है इसमें 8.5 प्रतिशत प्रोटीन, 3300 किलो कैलोरी/किग्रा ऊर्जा, 0.05 प्रतिशत कैल्शियम, 0.20 प्रतिशत पोस्पोरस और 0.3 प्रतिशत लाइसिन अमीनों अम्ल होता है।
उच्च गुणवक्ता वाला चारा विशेष रूप से फलियां आहार का पूरक हो सकती है।
प्रोटीन स्त्रोत के रूप में मटर, दाले और सरसों आदि का उपयोग किया जा सकता है। तिलहन फसलों जैसे- सरसों, सोयाबीन, सुरजमुखी आदि से तेल निकालने के बाद जो अवशिष्ट बच जाता है उसे मछलियों के लिए खाद्य रूप में काम में ले सकते है। तिलहन 20.30 प्रतिशत मुर्गी आहार में भागीदारी करते है। सोयाबीन मील में 48 प्रतिशत प्रोटीन तथा सुरजमुखी मील में 46.8 प्रोटीन होता है। मटर जैविक फीड़ फार्मुलेशन के लिए अधिक अच्छा माना जाता है। आॅयली फिश का उपयोग जैविक राशन में करते है इसे फैट सोया की तुलना में आवश्यकता अमीनों अम्लों की मात्रा अधिक होती है।
जैविक राशन में खनिज स्त्रोत के रूप में चुना पत्थर और फास्पेटराॅक काम में लिए जा सकते है। अण्डा उत्पादन करने वाली मुर्गीयों को चुना पत्थर व सीफ का खोल देना चाहिए, वह अण्डे़ के लिए आवश्यक कैल्शियम प्रदान करते है। पक्षियों को ओवर फीड़िंग से बचाना चाहिए। आवश्यक अमीनों अम्ल की आवश्यकता के लिए, जैविक सोयाबीन, स्किम मिल्क पाउड़र, आलू प्रोटीन, मक्का ग्लूटेन आदि काम में लिए जा सकते है।
पक्षियों (मुर्गीयों) को बिना किसी एजीबायेटिक और बैक्टीरियोलाॅजिकल अवशेषों के अच्छी गुणवक्ता वाला पानी पिलाना चाहिए। भुजल संदूषण के लिए पानी का नियमित परीक्षण किया जाना चाहिए।

Health Care and Medication (स्वास्थ्य देखभाल और दवा):
सर्वेक्षण में अधिकाश जैविक उत्पादकों में बहुत कम या कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं बताई गई है। अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता के संबंध में अच्छे प्रबन्धन और सावधानी पूर्वक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसमें शामिल है बैचों के बीच कीटाणु शोधन। हालांकि, वर्तमान में जैविक कुक्कूट पालन में कुद स्वास्थ्य समस्याएं है, जिसके लिए जैविक मानकों में कोई विशिष्ट समाधान नहीं पाया गया है। अन्य स्वास्थ्य मुद्दों जैसे वायरस की बिमारियों के लिए यह माना जाता है कि उपचार और टीकाकरण के अनुमत तरीकांे के माध्यम से रोकथाम के साथ संतोषजनक समाधन प्राप्त किया जा सकता है। पांरम्परिक हैचरी और रियरर्स से खरीदे गए पुराने चिट्स और पुलेट्स को किसी भी मामलें में कई बिमारियों के खिलाफ नियमित रूप से टीका लगाया जाएगा। सभी प्रबंधन व्यवस्थाएं पक्षियों की भलाई के अनुसार निर्देशित होनी चाहिए जिसके माध्यम से कि कई संक्रमणों को रोक सकते है।
बीमार तथा घायल पक्षी का शीघ्र उपचार करना चाहिए। जैविक कुक्कूट पालन में एटीबायोटिक का उपयोग नहीं करना चाहिए।
टीकाकरण का उपयोग तभी करना चाहिए जब बीमारी का पता हो या फज्ञर्म के समस्याग्रस्त होने की सम्भावना हो। जैविक कुक्कुट पालन में आयुर्वेदिक एवं होम्योपेथी प्राकृतिक दवाओं और विधियों को इस्तेमाल करना चाहिए। आयुर्वेदिक उपचार में हल्दी, तुलसी, आंवला और एलोवेरा आदि करना चाहिए।
हल्दी- हल्दी एक एजीआॅक्सीडेट, एटीमुटाजेनिक, एंटीइफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोविबयल, एजेंट के रूप में कार्य करती है।
तुलसी- तुलसी में एटीकंसर गुण होते है, यह रक्त शर्करा के स्तर में कमी और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाती है। आंवला विटामिन- सी का सबसे समृद्ध स्त्रोत है और यह सक्रिय टैनाॅइड सिंद्धान्तों में रोगाणुरोधी है, एटीबयोटिम्स, एंटीकार्सिनोजेनिक गुण और प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ाता है। एलोवेरा में फाइटोकेमिकल्स (सैफोनिन) होते है, जो औषधीय मुल्यों का एक संकेत है। एलोवेरा रानीखेत रोग से बचाता है।
गर्म तथा आर्द्र जलवायु क्षेत्र में कोक्सीडियोसिस और परजीवी समस्याएं अधिक है। मुर्गीपालन के लिए प्रजाति को विशेष चारा, स्वच्छ आवास उपलब्ध प्राकृतिक व्यवहार को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराने और स्वच्छ प्रणाली अपनाकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर कर सकते है।

Slaughter & Processing Facilities  (वध और प्रसंस्करण सुविधाएं): जैविक मुर्गी पालकों के पास फार्म पर खुद के पास वध और प्रसंस्करण की सुविधा होती है, जिन्हे या तो वध धरों (200-3000 पक्षी प्रति सप्ताह) या छोटे आॅन-फार्म सुविधाओं के माध्यम से वर्गीकृत किया गया है।
निम्न प्रवाह क्षमता वाले वध गृह श्रेणी में निर्माता (उत्पादनकर्ता) एक अर्द्धस्वचालित हल्पा मशीन और गीली प्लकिंग मशीन का उपयोग मुर्गीयों को काटने में करता है जिससे एक बाउल प्लकर पक्षी को गर्म टैंक में डुबोया जाता है, जिसका समीक्षात्मक तापमान 0.25 तथा समीक्षात्मक समय 25 सैकेण्ड होता है। एक कटोरे में 5 पक्षी होते है। दो लोग इसका उपयोग करके 4 घण्टे में 200 पक्षियों को मार सकते है। हालांकि, यह उपकरण हर हफ्ते सीमित अवधि के लिए उपयोग में लिया जा सकता है।
एक अन्य वध श्रेणी में निर्माता फार्म पर ही वध करते थे। लेकिन पर्यावरणीय स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा यह बंद करवा दिया गया। अब यह 35 किलोमीटर दूर ले जाकर पक्षियों का वध करते है और वहीं से भरकर पहुंचाये जाते है कसाइयों की एक टीम को मुर्गीयों को काटने व पैक करने के लिए लगाया जाता है।

वध आवास बनाने में आने वाली दुविधाए निम्नलिखित है-

  • निकटतम संगठनात्मक रूप से स्वीकृत स्लाॅटर हाॅउस की दूरी
  • संबंधित परिवहन लागत।
  • वूचड़खानों में संसाधित छोटे बैच आकार प्राप्त करने में कटिनाई
  • उद्योग की बिखरी हुई प्रकृति जो फार्मो के बीच प्रभावी सहयोग को रोकती है।

चलित पशुवध व्यवस्था कृषि आधारित प्रसंस्करण सुविधाओं और बड़े बूचड़खानों के विकल्प के रूप में पहचाना जा सकता है, इसमें प्रत्येक फार्म पर जाया जाता है और फार्म के समुहों में से केन्द्रिय बिन्दु चूना जाता है इस प्रकार से जानवरों के परिवहन को कम किया जा सकता है। अब तक मोबाइल स्लाॅटर हाऊस केवल बड़े पशुओं के लिए विकसित है, इसका मतलब मुर्गीयों के वध के लिए वाहन सुविधाओं की आवश्यकता होती है।

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