मूंग की जैविक खेती

जैविक मूंग उत्पादन की तकनीकें
उन्नत किस्में
- के.-851, आर. एम.जी.-62, आर.एम.जी.-268, एम.एल.-287, एल.एम.एल.-608, जी.एम.-4
खेत की तैयारी
- खेत मे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें व दो जुताई कल्टीवेटर से करके तुरंत पाटा लगाकर भूमि को समतल बनायें।
भूमि उपचार
- बुवाई के समय 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर नीम/करंज खली आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें।
बीज दर
- प्रति हैक्टेयर 15-20 किलोग्राम बीज बोयें
बुवाई
- बुवाई जून के अन्त या जुलाई के प्रथम सप्ताह तक करें।
- कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखते हुए करें ।
बीजोपचार
- बीजों का जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा वाइरिडी से 6.0 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोपचार करें।
पोषक तत्व प्रबंधन
- बुवाई से 21 दिन पूर्व 6 टन गोबर की खाद या 3 टन वर्मी कम्पोस्ट या रॉक फास्फेट 50 किलोग्राम तथा जिप्सम 250 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलायें।
- बीडी 500 की 75 ग्राम मात्रा का 40 लीटर पानी/हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर 30-35 दिन की फसल पर छिड़काव करें।
सिंचाई
- फलियों आने व फलियों में दाना बनते समय
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
- प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30 दिन बाद व दूसरी 50-55 दिन बाद करनी चाहिये।
कीट एवं रोग प्रबंधन
- पीतशिरा मोजेक विषाणु रोग : इस रोग के विषाणुओं का वाहक सफेद मक्खी है जिसके नियंत्रण हेतु नीम तेल 4 मिली/लीटर पानी का घोल बनाकर दोबारा 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करे। इसके अलावा पीले रंग को चिकनाई युक्त तस्तियों (10/हैक्टेयर) खेत मे खड़ी करें। सफेद मक्खी पीले रंग की ओर आकर्षित होकर चिपक जाती है।