धनिये की जैविक खेती

जैविक धनिया उत्पादन की तकनीकें
खेत की तैयारी
- हल्का पलेवा देकर प्रथम जुताई मिट्टी पलटने बाले हल से तथा द्वितीय व तृतीय जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार कर लिजिए।
भूमि उपचार
- बुवाई के समय 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर नीम/करंज खली आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें।
बीज दर
- प्रति हैक्टेयर 20 किलोग्राम बीज बोयें
बुवाई
- 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक
- कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर में करें
- बीज को रगड़कर दो भागों में विभाजित करके ही बुवाई करें तथा बीज की गहराई 6 से 8 सेन्टीमीटर से ज्यादा न करें।
बीजोपचार
- बीजों का जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा वाइरिडी से 6.0 ग्राम प्रति किलो बीज दर से एवं 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से बीजोपचार करें।
पोषक तत्व प्रबंधन
- बुवाई से 21 दिन पूर्व 5 टन गोबर की खाद या 1.67 टन वर्मी कम्पोस्ट प्रति हैक्टेयर अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलायें।
सिंचाई
- पहली सिंचाई शाखा बनते समय बुवाई के 50 से 60 दिन बाद व दूसरी दाना बनते समय 90 से 100 दिन बाद करें।
निराई-गुड़ाई
- प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी 55-60 दिन बाद करनी चाहिये।
कीट एवं रोग प्रबंधन
मोयला कीट तथा उखटा, छाछ्या एवं झुलसा रोग
- उखटा रोग नियंत्रण के लिए बीजों को ट्राइकोडर्मा 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें।
- मोयला के नियंत्रण हेतु पीली चौड़ीदार तख्ती पर ग्रीस लगाकर एक हैक्टेयर खेत में 10 से 15 की संख्या में लगायें या नीम आधारित एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. का 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी (2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर) की दर से छिड़काव करें।