काबुली चना की जैविक खेती

जैविक काबुली चना उत्पादन की तकनीकें

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
मध्यम व भारी मिट्टी के खेतों में गर्मी में एक दो जुताई करें। जहाँ सिंचाई की व्यवस्था है और खरीफ की फसल के बाद चने की फसल ली जाती है वहाँ आवश्यकतानुसार हल्का पलेवा देकर खेत की तैयारी करें। दीमक एवं कटवर्म के प्रकोप से बचाव हेतु नीम की खली अथवा करंज की खली 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायंे।
काक-2 (1999): यह किस्म 100-110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है इसके 100 दानों का भार 38 ग्राम होता है। इस किस्म की उपज 17-18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।

बीजदर एवं बुवाई
प्रति हैक्टेयर 70-80 किलो बीज बोयें। कतार से कतार की दूरी 30 संेंटीमीटर रखें। सिंचित क्षैत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी व बारानी क्षैत्र में नमी को देखते हुए 7-10 सेंटीमीटर गहरी बुवाई कर सकते है। असिंचित क्षैत्रों में चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कर देवें तथा सिंचित क्षैत्रों में बुवाई 20 अक्टूबर तक करें। जिन खेतों में उखटा रोग का प्रकोप अधिक होता है वहां गहरी व देरी से बुवाई करना लाभदायक रहता है।

बीजोपचार
चने में जड़ गलन रोग के नियंत्रण हेतु प्रति किलो बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर बुवाई करें।

पोषक तत्व प्रबन्धन
बुवाई के 21 दिन पूर्व 3 से 4 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद प्रति हैक्टेयर खेत में डाल कर भली-भांति मिलावें। बीजों को राइजोबियम कल्चर तथा पी.एस.बी. से उपचारित करके बोयें।

सिंचाई
चने की खेती अधिकतर बारानी क्षेत्रों में की जाती है परन्तु जहाँ पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहाँ मिट्टी व वर्षा को ध्यान में रखते हुए पहली सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद फूल आने पर एवं दूसरी फली आने पर करें। यदि एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो 60 दिन बाद देवें।
ध्यान रखें, खेत में कहीं भी पानी नहीं भरना चाहिये वरना फसल पीली पड़ जायेगी और मर जायेगी। यदि खेत में जल्दी उखटा रोग लग जाये तो क्यारी बनाकर बुवाई के 20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये।

निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण
प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-35 दिन पर तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरी निराई-गुड़ाई इसके बीस दिन बाद करें।

पौध संरक्षण
दीमक: इसकी रोकथाम के लिए खेत को मेंडों पर बने दीमक के घरों को नष्ट करें तथा ‘‘मेटाराइज़म‘‘ पाउडर का बुरकाव करें।
चना फली छेदक: फली छेदक कीट की रोकथाम हेतु नीम की निम्बोली के रस का 5 प्रतिशत विलयन या नीम का तेल 500 पी.पी.एम. का छिड़काव करें। इसके उपरान्त आवश्यकतानुसार हेलीकोवरपा एन.पी.वी. 250 एल.ई./हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें तथा 20 दिन बाद छिड़काव दोहरावें। चने में फली छेदक नियंत्रण हेतु तम्बाकू की सूखी पत्तियों का 3 प्रतिशत का घोल बनाकर फूल लगने व फली बनते समय छिड़काव करें।

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