गेहूँ की जैविक खेती

जैविक गेंहू उत्पादन की तकनीकें

उन्नत किस्में
विभिन्न कृषि संभागों के लिए सिफारिश की गई गेहूँ की किस्में जैसे-डब्ल्यू.एच.-147, लोक-1, राज-3077, जी.डब्ल्यू- 190, राज-3765, जी डब्ल्यू-173, जी डब्ल्यू-273, राज-3777, जी डब्ल्यू- 322, राज-4037, राज-4083, एच आई- 1544, राज-4120, राज-4079 इत्यादि किस्में बोयें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
फसल की अच्छी वृद्धि के लिएखेत को भली-भांति तैयार करना चाहिये। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा द्वितीय व तृतीय जुताई कल्टीवेटर से करके तुरंत पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लें। अंतिम जुताई के समय दीमक से बचाव के लिए नीम की खली से 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि उपचार करें।

बीज दर एवं बुवाई
एक हैक्टेयर में बुवाई के लिए सिफारिश अनुसार 100-125 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। गेहूँ की बुवाई लाइनों में कतार से कतार की दूरी 22.5 सेन्टीमीटर में करें तथा बीज को 5 सेन्टीमीटर से अधिक गहरा न बोयें।गेहूँ की बुवाई हेतु नवम्बर के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक का समय उपयुक्त है। देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी होती है। वातावरण में तापमान के आधार पर भी बुवाई का समय तय किया जा सकता है जिसमें न्यूनतम व अधिकतम तापमान का औसत जब 20 डिग्री सेल्सियस होवें तब बुवाई करें।

बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी से 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीज को जीवाणु कल्चर से उपचारित करें। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सूखाकर तत्काल बुवाई कर दें। यदि बीजोपचार सम्भव नहीं हो तो ट्राइकोडर्मा विरिडी, एजोटोबेक्टर कल्चर तथा पीएसबी कल्चर प्रत्येक 2.0 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 100किलोग्राम गोबर की बारीक खाद में मिलाकर खेत तैयार करते समय बुवाई से पूर्व डालें।

पोषक तत्व प्रबंधन
गेहूँ में 90 किलोग्राम नत्रजन व 40 किलोग्राम फाॅस्फोरस की आवश्यकता होती है।
कोटा: आवश्यक पोषकतत्वों की पूर्ति के लिए गर्मियों में ढेंचे की हरी खाद लेवें तथा बुवाई से 21 दिन पूर्व 9 टन गोबर की खाद या 3 टन वर्मीकम्पोस्ट भूमि में मिलायें। यदि गर्मी में हरी खाद लेना संभव न हो तो बुवाई से 21 दिन पूर्व 13.5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या अंतिम जुताई के समय 4.5 टन वर्मीकम्पोस्ट भूमि में मिलायें। इसके अलावा उपरोक्त बताए अनुसार एजोटोबेक्टर एवं पीएसबीशाकाणु संवर्धों से बीजोपचार कर बुवाई करें।
भीलवाड़ा: इस संभाग में आवश्यक पोषकतत्वों की पूर्ति के लिए बुवाई से 21 दिन पूर्व 18.0 टन सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिलायें तथा इसके साथ-साथ बीजों को एजोटोबेक्टर एवं पीएसबी शाकाणु संवर्धों से बीजोपचार कर बुवाई करें।
बांसवाड़ा: यदि गर्मियो मे हरी खाद व गोबर की खाद का उपयोग नही किया है तो गोबर की खाद 24 टन, जिप्सम 500 किलोग्राम/हैक्टेयर की दर से पहली जुताई के साथ मिट्टी मे मिला देवे। बीडी 500 की 75 ग्राम /हैक्टेयर की दर से 40 लीटर पानी मे मिलाकर अंतिम जुताई से पहले छिडकाव करंे।बुवाई के तुरंत बाद सुबबूल की 15 टन हरी पत्तियों/हेक्टेयर का पलवार के रूप मे बिछा देवे व पहली निराई गुडाई के साथ मिट्टी मे मिला देवें। निराई-गुडाई से पहले मुर्गी की खाद 2 टन प्रति/ हैक्टेयर की दर से उपयोग करे।

सिंचाई
गेहूँ की फसल को भूमि में नमी की उपलब्धता को देखते हुए भारी मिट्टी में 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई फसल बोने के 20-25 दिन पर शीर्ष जड़ जमने के समय करें। दूसरी सिंचाई फसल फुटान की उत्तरावस्था पर 50-60 दिन पर करें। तीसरी सिंचाई बुवाई के 75-80 दिन बाद बालियाँ शुरू होने की अवस्था पर करें तथा चैथी सिंचाई दाने की दूधिया अवस्था पर 95-100 दिन पर करंे।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
गेहूँ की फसल में प्रथम सिंचाई के बाद 10-12 दिन के अन्दर एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार अवश्य निकाल दें एवं बाद में भी खरपतवार दिखाई दे तो निकालते रहें।

पौध संरक्षण
गेहूँ में साधारणतया कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है। कोटा व बांसवाड़ा संभाग में गेहूँ में अनावृत कण्ड़वा रोग का प्रकोप सामान्यतः होता है। इस रोग से बचाव हेतु बीज को सौर उपचार करके बोयें। इस रोग से प्रभावित पौधो मे बालिया जल्दी निकलती है इसके बचाव हेतु संक्रमित बालियाँ एवं पूरे पौधो को कपड़े की गीली थैली से ढककर उखाड़ कर जला दे। इस रोग का कवक बीज के अंदरूनी हिस्से मे रहता है अतः उसके नियंत्रण हेतु प्रथम बीज को ठण्डे पानी में 10 मिनट भिगोएॅ। तत्पश्चात् बीज को गर्मपानी (52ºC) मे 10 मिनट भिगोकर रखे। इसके उपरांत बीज को पानी से निकालकर छायादार जगह पर सुखा देवें एवं बुवाई हेतु उपयोग करे।

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