अरण्डी की जैविक खेती

जैविक अरण्डी उत्पादन की तकनीकें
उन्नत किस्में
जी.सी.एच.-5, आर.एच.सी.-1, डी.सी.एस.-9, जी.सी.एच.-7, इत्यादि संभागीय सिफारिश अनुसार बोयें।
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
अरण्डी के लिएबलुई, दोमट मिट्टी वाला क्षेत्र जिसमें जल विकास की पूरी व्यवस्था हो, चुनिये। पानी के भराव वाले क्षेत्र में अरण्डी न बोये। इसकी खेती के लिए क्षारिय भूमि उपयुक्त नहीं है परन्तु यह हल्की अम्लीय भूमि को सहन कर सकती है। खरपतवार ग्रस्त खेतो में दो अच्छी जुताइयों की आवश्यकता होती है।ट्राइकोडर्मा प्रसंस्कृत गोबर खाद (1ः200 ) से भूमि उपचार करे। ट्राइकोडर्मा प्रसंस्कृत गोबर खाद बनाने हेतु 200 किलोग्राम अच्छी सडी हुई गोबर खाद छायादार जगह पर परत दर परत बिखेरे। नमी के लिए पानी छिडकें एवं इसे एक ढेर बनाकर तिरपाल से ढक लें। 25 दिन पश्चात् ट्राइकोडर्मा कवक गोबर खाद के ढेर मे फैल जाएगी जिसे अच्छी तरह मिलाकर खेत मे उर देवे।
बीज दर एवं बुवाई
बीज की मात्रा बीज के आकार पर निर्भर करती है। सामान्यतया प्रति हैक्टर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अरण्डी की बुवाई का समय जून के प्रथम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है। पौधे की अच्छी बढ़वार के लिएसिंचित क्षेत्र में कतार ये कतार की दूरी 90 सेन्टीमीटर तथा असिंचित क्षेत्र में 60 सेन्टीमीटर रखें। बीज बोने में 6 सेन्टीमीटर से अधिक गहरा नही बोना चाहिये।
बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशक से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के पश्चात् 600 ग्राम अजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सभी बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये, फिर छाया मंे सुखाकर तत्काल बो देना चाहिए।
पोषकतत्व प्रबन्धन
जैविक पोषकप्रबंधन के लिए अरण्डी में सड़ी हुई गोबर की खाद 8 टन तथा राॅक फास्फेट 120 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से अन्तिम जुताई के साथ मिट्टी में मिला देवे। फसल की कतारों के बीच ढैंचा की बुवाई करें एवं बुवाई के 35 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई के साथ मिट्टी में मिला देवे।
सिंचाई
अरण्डी की वर्षा पूर्व बुवाई करने के लिए 1 से 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। अरण्डी को सामान्यतया वर्षा प्रारम्भ होने पर ही बुवाई करते है इसलिए वर्षा नही होने की स्थिति में फूल आने पर सिंचाई अवश्य करे।
निराई-गुडाई
प्रारम्भिक अवस्था मंे अरण्डी की फसल पर खरपतवारों का अधिक प्रभाव होता है। जब तक पौधा 60 सेन्टीमीटर का न हो जाये और पौधे अपने बीच की दूरी को ढंक न ले, तब तक समय समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिये।
पौध संरक्षण
उखटा रोग: यह रोग फ्युरासियम आॅक्सिस्पोरम फाॅ.स्पी. रिसिनी नामक कवक द्वारा होता है। यह कवक पौधे की द्रव्य एवं भोजन नलिका को नष्ट कर पौधे को सुखा देता है। यह कवक मृदा जनित है। इस रोग के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा प्रसंस्कृत गोबर खाद (1ः200 ) से भूमि उपचार करंे। बुवाई पूर्व बीज को ट्राइकोडर्मा फार्मूलेशन 10 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करे। खड़ी फसल मे सिडोमोनास फ्लोरेसेंस 4 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करंे। 15 दिन बाद छिड़काव दोहरावें।
तम्बाकूइल्ली एवं बिहारी रोयंेदार इल्ली
बुवाई के पहले नीम की खली (250 किलोग्राम/हेक्टेयर) द्वारा भूमि उपचार करंे। बुवाई के एक माह पश्चात् 20-25 दिन के अन्तराल पर नीम तेल 4 मिली/लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। इल्ली की प्रारंभिक अवस्था के नियंत्रण हेतु एन.पी.वी. का उपयोग करें। खेत में चिडियों को बैठने हेतु पक्षी आश्रय (12-15/हेक्टेयर) तथा फेरोमेन टेªप (15-20/हेक्टेयर) का प्रयोग करें।
अण्ड परभक्षी ट्राइकोग्रामा बुवाई के 15 एवं 30 दिन पश्चात् एवं एन.पी.वी. 250 एल.ई./हेक्टेयर का प्रयोग करंेे। 50 दिन की फसल अवस्था पर सूक्ष्मजीवी कीटनाशक बेसीलस थुरिन्जंेसिस (बी.टी.) का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करंे।