मूंगफली की जैविक खेती

जैविक मूंगफली उत्पादन की तकनीकें

उन्नत किस्में
जे.एल.-24, आर.जी.-141, जी.जी.-2, जे.-38, डी. एच.- 86, टी.जी.-37-ए, प्रताप मूंगफली-2, प्रताप राज मूंगफली, टी.ए.जी.-24 इत्यादि संभागीय सिफारिश अनुसार बोयें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
मूंगफली की बुवाई जून के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक करना उपयुक्त रहता है। देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी आती है। मानसून की पहली वर्षाआते ही पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद की दो जुताई कल्टीवेटर से करिये ताकि भूमि भुरभुरी हो जाये और इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिएखेत तैयार कर लिजिए। यह ध्यान रखें कि जैविक मूंगफली की खेती में किसी प्रकार का रसायन या इससे बना उत्पाद काम में नहीं लेना है। दीमक एवं भूमिगत कीटों की रोकथाम के लिए बुवाई के समय 2 क्विटंल प्रति हैक्टेयर नीम की खली अंतिम जुताई के समय खेत में मिलायें।

बीज दर एवं बुवाई
उन्नत किस्म वाली झुमका किस्म का 100 किलोग्राम बीज (गुली) प्रति हैक्टर बोइये। इन किस्मों हेतु कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेन्टीमीटर रखिए। फेलने वाली किस्म 60 से 80 किलोग्राम बीज (गुली) प्रति हैक्टर बोइये तथा कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेन्टीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेन्टीमीटर रखिए। मंूगफली की बुवाई का उपयुक्त समय जून के प्रथम सप्ताह से दुसरे सप्ताह तक है।

बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें। ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशक से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के पष्चात् 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सभी बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये, फिर छाया मंे सुखाकर तत्काल बो देना चाहिए।

पोषकतत्व प्रबन्धन

भीलवाड़ा संभाग हेतुः जैविक पोषकप्रबंधन के लिए मूंगफली में केचुऐं की खाद (वर्मीकम्पोस्ट) 1.0 टन प्रति हैक्टेयर + 0.35 टन राॅक फाॅस्फेट या गोबर की खाद (एफ.वाई.एम.) 3.0 टन प्रति हैक्टेयर $ 0.35 टन राॅक फाॅस्फेट प्रति हैक्टयर प्रयोग करें। साथ ही बायोडायनेमिक खाद 500 एवं 501 का कलेण्डर के अनुसार छिड़काव करें।

बायोडायनेमिक खाद 500 का प्रयोगः 75 ग्राम बी.डी. 500 खाद को 40 लीटर पानी में एक घंटे तक घडी की दिशा एवं विपरित दिशा में लकडी से घूमाते हुए भंवर अच्छी प्रकार बना लेनी चाहिए। बुवाई से पहले इस घोल को सायंकाल चन्द्र की दक्षिणायन अवस्था मे झाडू या पत्ती युक्त शाखा से खेत मे बडे-बडे बँूद के रूप मे छिडकाव करना चाहिए। इसका दूसरा छिड़काव बुवाई के एक महीने के बाद करे। इसके प्रयोग फलस्वरूप पौषक तत्व उपलब्धता बढेगी एवं कीट व्याधियाॅ कम होगी।

बायोडायनेमिक खाद 501 का प्रयोगः 2.5 ग्राम बी.डी.501 को 40 लीटर पानी में एक घंटे तक घडी की दिशा एवं विपरित दिशा में लकडी से घूमाते हुए भंवर अच्छी प्रकार बनाते हुए प्रातःकाल अच्छी प्रकार छिड़काव किया जाता है। प्रथम छिडकाव पौधो पर 1-2 पत्ती अवस्था आने के बाद तथा द्वितीय छिडकाव 7-8 पत्ती के समय, तृतीय छिडकाव फूल खिलते समय तथा चतुर्थ छिडकाव फली बनने की शुरूआत की अवस्था के समय में प्रातःकाल के समय चन्द्र उत्तरायण की स्थिति मे छिडकाव किया जाना चाहिए।

बांसवाड़ा: अंतिम जुताई से पूर्व सडी हुई गोबर की खाद 4 टन, राॅक फास्फेट 250 किलोग्राम, जिप्सम 250 किलोग्राम/हेक्टेयर व बीडी. 500 की 75 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से देकर मिट्टी मे मिला देवंे।ढैंचा का बीज फसल की कतारो के बीच मे डाले व पहली निराई गुडाई(20 दिन बाद ) के साथ मिट्टी मे मिला देवें।जिप्सम 250 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर सें फसल की कतारों के बीच डालकर दूसरी निराई गुडाई (35-40 दिन बाद ) के साथ मिट्टी मे मिला देवे।बीडी 500 का 75 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 40 लीटर पानी मे घोलकर 40-45 दिन की फसल मे छिडकाव करें।

सिंचाई
मंूगफली की बुवाई जून के प्रथम व दूसरे सप्ताह में करने पर वर्षा आरम्भ होने से पहले 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल में फुल व फलियां बनते समय वर्षा न होने पर सिंचाई अवश्य करें।

निराई गुडाई
मूंगफली की फसल में 30 दिन की फसल होने तक निराई गुडाई पूरी कर लिजिए। बुवाई के एक माह बाद झुमका किस्म के पौधांे की जड़ांे पर मिट्टी चढ़ा दीजिए। जमीन में मूंगफली की सुईआँ बनना शुरू होने के बाद गुड़ाई बिल्कुल न किजिए। दूसरी गुड़ाई के उपरान्त निकाले गये खरपतवारो को कतारो के मध्य पलवार के रूप में डाल देने से खरपतवार नियन्त्रण होता है। बुवाई के समय फसल की कतारो के बीच ढैंचा बोने व पहली गुड़ाई के साथ ढैंचा को मिट्टी में मिला देने से खरपतवार नियन्त्रण होता है।

भण्डारण
फलियों का भण्डारण गहाई के बाद 3-5 दिन धूप मे सूखाने के बाद बोरियों मे भरकर ठण्डे व हवादार स्थान पर रखंे।

पौध संरक्षण
पत्ती धब्बा रोग
बांसवाड़ा: मुगंफली की फसल मे पत्ती धब्बा रोग जैसे टिक्का (सेरकोस्पोरा अराचिडिकोला ) एवं पछेेती पत्ती धब्बा रोग (फिआईसारिआॅप्सिस अराचिाडिकोला ) नियंत्रण हेतु लहसुन रस (10 प्रतिशत) से बीजोपचार एवं रोग दिखते ही 10 दिनो के अंतराल पर दो छिड़काव करें।
भीलवाड़ा: पत्ती धब्बा रोग नियन्त्रण हेतु पहला छिड़काव 10 प्रतिशत नीम की पत्तियों के घोल से 10 से 20 दिन पश्चात्, द्वितीय छिड़काव निम्बोली के अर्क के 5 प्रतिशत घोल से बुवाई के 30 से 40 दिन पश्चात् तथा तीसरा छिड़काव 2 प्रतिशत नीम के तेल के घोल से बुवाई के 50 से 60पश्चात् करें।
सफेद भृंगएवं पत्ती सुरंगक: नीम खली (2 क्विंटल/हेक्टेयर) एवं मेटाराइजियम (10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर) द्वारा भूमि उपचार कर बुवाई करे। नीम बीज आवरण रस (5 प्रतिशत ) एवं नीम तेल 4 प्रतिशत 30 एवं 55 दिन की फसल पर छिडकाव करे। पत्ती सुरंगक के नियंत्रण हेतु सोयाबीन को मूंगफली की फसल के साथ अंतर फसल के रूप मे बोया जा सकता है। मूंगफली मे तम्बाकूइल्ली के नियंत्रण हेतु ट्राइकोग्रामा कार्ड, एन.पी.वी. एवं न्यूमेरिया रैंली नामक कवक का उपयोग किया जा सकता है।

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