पंचगव्य

पंचगव्य का महत्वः
पंचगव्य द्वारा शरीर के रोग निरोधक क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। गौमूत्र में प्रति आॅक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। पंचगव्य के प्रयोग से फसल की एक अच्छी उपज मिलती है। यह वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों (कम या उच्च नमी ) में भी एक समान फसल की पैदावार देने में सहायता करता है।

सामग्री

  • 5 किलोग्राम देषी गाय का ताजा गोबर
  • 3 लीटर गो-मूत्र
  • 2 लीटर गाय का दूध
  • 2 लीटर गाय का दही
  • 1 किलो गाय का घी
  • 1 किलो गुड़
  • 1 लीटर कोमल नारियल का पानी (उपलब्ध होने पर)
  • 12 नंग पके केले (उपलब्ध होने पर)
  • 1 बड़े मुंह का बर्तन 20-25 लीटर क्षमता का

विधि
1. गाय का गोबर एवं घी को एक बर्तन/घड़े में अच्छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण को दिन में दो बार सुबह एवं शाम 3 दिन तक हिलायें।
2. चैथे दिन गौ-मूत्र दूध तथा दही को मिलाते है।
3. इसके बाद गुड़ तथा नारियल पानी मिलाते हैं। गुड़ का गर्म पानी में घोल तैयार कर लें तथा 30 मिनिट बाद इस घोल को मिलाते हैं। इन सभी सामग्री को दिन में 2 बार 15 दिन तक हिलाते रहते हैं।
4. पंचगव्य 15 दिन में तैयार हो जाता है। इस प्रकार तैयार घोल पंचगव्य का मातृ घोल कहलाता हैं।

चित्र: पंचगव्य तैयार करने की विधि

उपयोग:

  1. पर्णीय छिड़काव के रूप में: अधिकतर फसलों में 3 प्रतिषत पंचगव्य प्रभावकारी है। 3 लीटर पंचगव्य 100 लीटर पानी को मिलाकर पर्णीय छिड़काव से पहले घोल को छान लेना चाहिए ताकि स्प्रे करते समय नोजल बन्द न हो।
    2. सिंचाई के रूप में: पंचगव्य घोल को सिंचाई के रूप में प्रयोग कर सकते है। इसके लिए मात्रा 20 लीटर/एकड़ की दर से प्रयोग करें। इसे धरातलीय सिंचाई या ड्रिप सिंचाई के साथ प्रयोग मंे ले सकते है।
    3. बीज या पौध उपचारमें: नर्सरी बेड का 3 प्रतिषत घोल से ड्रेंचिग करते है या पौधों को 3 प्रतिषत घोल में डुबोते है। पौध को घोल में 30 मिनिट तक रखना चाहिए।

पंचगव्य के लाभ:

  • पंचगव्य के प्रयोग से फसल की एक अच्छी उपज मिलती है।
  • यह अनाज, फल, फूल व सब्जियों का उत्पादन एक बेहतर रंग, स्वाद, पौष्टिकता तथा विषाक्त अवशेषों के बिना करता है जिससे फसल की बाजार में अधिक कीमत मिलती है।
  • यह बहुत सस्ता एवं अधिक प्रभावकारी है जिससे कृषि में कम लागत पर अधिक लाभ मिलता है।
  • इसके प्रयोग से पत्तियों एवं तने पर एक पतली तैलीय परत का गठन हो जाता है जिससे पानी का वाष्पीकरण कम होता है तथा जड़ें मृदा में गहरी परतों में फैलकर वृद्धि करती हैं और आवश्यक पोषक तत्वों एवं पानी को अधिकतम मात्रा में अवशोषित कर लेती हैं जिससे पौधे शुष्क वातावरण अवधि को सहने में सक्षम हो जाते हैं ।
  • पंचगव्य के प्रयोग से पौधे के लिए सिंचाई के पानी की आवश्यकता कम हो जाती है।

पंचगव्य बनाते समय रखने योग्य सावधानियांः

  1. पंचगव्य बनाने के लिए हमेशा मिट्टी का घड़ा ही प्रयोग में लेना चाहिए।
    2. गाय के उत्पादों को मिलाते समय उचित अनुपात का ध्यान रखना चाहिए।
    3. मिट्टी के घड़े के मुहं को मक्खियों व मच्छरों से बचाने के लिए हमेशा सूती कपडे से ढ़कना चाहिए।
    4. पंचगव्य बनाते समय छायादार स्थान का चुनाव करना चाहिए।
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