मक्का की जैविक खेती

जैविक मक्का उत्पादन की तकनीकें

उन्नत किस्में
मक्का की कई उन्नत किस्में प्रचलित हैं जैसे कि प्रताप एचक्यूपीएम हाईब्रीड़-1, एचक्यूपीएम-1, एचक्यूपीएम-5, प्रताप संकर मक्का-3, प्रताप मक्का-3, प्रताप मक्का-5, प्रताप मक्का-9 इत्यादि काम में लेवें। विभिन्न संभागों की सिफारिश के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन करें।

खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से एवं बाद में देशी हल/त्रिफाली/ बक्खर से जुताई करके खेत तैयार करें। बीज के अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यह ध्यान रखें कि जैविक मक्का की खेती में किसी प्रकार का रसायन या इससे बना उत्पाद काम में नहीं लेना है। दीमक एवं भूमिगत कीटों की रोकथाम के लिए2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर नीम/करंज खली आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें।

बीज दर एवं बुवाई
प्रति हैक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज बोयें। बुवाई जून के अन्त या जुलाई के प्रथम सप्ताह तक करें। सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध होने पर सिंचाई कर मक्का की बुवाई 15 से 30 जून तक करें। समय पर बुवाई किया जाना आवश्यक है।
बुवाई कतारों में, कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखते हुए करें। बीज की गहराई 5 सेन्टीमीटर से ज्यादा न रखें, इससे अंकुरण में सरलता रहती है। पौधों की संख्या प्रति हैक्टेयर 66 हजार के लगभग रखें।
मक्का की जल्द पकने वाली किस्मों में 30 से 35 किलोग्रामग्राम बीज प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें तथा पौधों की संख्या 75 से 80 हजार प्रति हैक्टेयर रखें। कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 27 से 30 सेन्टीमीटर रखें।
बारानी परिस्थितियों में मक्का ़उड़द की अन्तर्शस्य खेती 2ः2 के अनुपात में करें।

बीजोपचार
बोने से पूर्व बीजों को जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडीकी 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात् बीज को जीवाणु कल्चर से उपचारित करें। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें एवं ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर एवं 600 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें। कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये। फिर छाया में सूखाकर तत्काल बुवाई कर दें। यदि बीजोपचार सम्भव नहीं हो तो ट्राइकोडर्मा विरिडी, एजोटोबेक्टर कल्चर तथा पी.एस.बी. कल्चर प्रत्येक 2.0 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से लेकर 100 किलोग्राम गोबर की बारीक खाद में मिलाकर खेत तैयार करते समय बुवाई से पूर्व डालें।

पोषक तत्व प्रबंधन
मक्का को 90 किलोग्राम नत्रजन की आवश्यकता होती है। मक्का में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए कृषि अनुसंधान केन्द्र, उदयपुर एवं भीलवाड़ा में किये गये जैविक खेती प्रयोगों के निष्कर्ष के आधार पर मक्का में 13.5 से 18 टन गोबर की खाद बुवाई के 21 दिन पूर्व खेत में डालकर इसे भूमि में भली-भाँति मिला दें। बीजों को एजोटोबैक्टर एवं पी.एस.बी. कल्चर से उपचारित कर बुवाई करें।

सिंचाई
पौधों को बढ़वार के समय और सिल्किंग एवं टेसल मांझर आते समय पानी की अधिक आवश्यकता होती है अतः इन अवस्थाओं पर वर्षा नहीं होने पर सिंचाई अवश्य करें।

निराई गुड़ाई
मक्का की फसल को शुरू के 20-30 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। अतः खेत से खरपतवार निकालते रहें। मक्का की फसल में पहली गुड़ाई बुवाई के 15 दिन बाद तथा दूसरी गुड़ाई 30 दिन पर कर खरपतवार अवश्य निकाल देवें।

फसल संरक्षण
मक्का के प्रमुख कीट: तना छेदक, मोयला, फड़का व सैन्य कीट।
प्रमुख बीमारियाँ: पत्ती धब्बा, तुलासिता व तना गलन।

इनके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित जैविक मोड्यूल का प्रयोग करना चाहिए –

  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के साथ नीम की खली 2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर डालें।
  • ट्राइकोडर्मा 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।
  • अंकुरण के 3, 10 एवं 30-35 दिन पश्चात् नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) का छिड़काव करें।
  • ट्राइकोग्रामा अण्ड परजीवी 1.5 लाख प्रति हैक्टेयर की दर से फसल की 7, 14 एवं 50 दिन की अवस्था पर छोड़ें।
  • ऽ बी.टी. फाॅर्मुलेशन 1 लीटर/हैक्टेयर की दर से फसल की 10 एवं 60 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें।
  • मिट्टी चढ़ाने के समय पुरानी पत्तियों को जलावें एवं मृत एवं बीमारी से ग्रसित पत्तियों को हटा दें। 
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